मृत्यु और मोक्ष
मोनिका त्यागी
विशेष प्रतिनिधि,
पश्चिमी उप्र प्रमुख
‘‘मधुरता मन में ना होती तो, शब्द जहर बन गया होता,
दर्द हृदय में ना होता तो, मनुष्य पत्थर बन गया होता,
वासना प्यार को ना छलती तो, प्रेम वरदान बन गया होता,
प्रार्थना भक्त में ना होती तो, भक्त भगवान बन गया होता।’’
‘‘उनका कोई गम नहीं जो,
तूफाॅ के मौजों में डूबे-
गम तो उनका है जो,
डूबे हैं किनारों पर।’’
मौत और मोक्ष में इतना ही अंतर है जो बार बार दुनियाॅ में जन्म लेकर आता है, बार बार जन्म लेने के बाद भी मृत्यु को अंगीकार करने को बाध्य होता है वह मौत है, और जो दुबारा जन्म ना लेना पड़े साथ ही प्रकृति की शक्तियों को अपने में पूरी तरह समाहित कर जन्म मृत्यु से परे होना मोक्ष है अर्थात दुबारा जन्म न लेने की जहमत से पूर्ण मुक्ति। दुनियाॅ भी बड़ी अजीब है। जब कोई मरता है तो उसकी अर्थी को कंधा देने वाले ‘‘राम नाम सत्य है’’ कहते हैं, जो शाश्वत सत्य है तो उसे मुर्दे को सुनाते हैं जो सुन ही नही सकता। वैसे इसका अर्थ भी नही समझते और ना ही अपने जीवन में कभी इसको जपते हैं। काश इन्सान जीते जी श्रीराम शब्द के शक्ति और महत्ता को समझ लेता तो उसके जीवन के जीने का मर्म समझ में आ जाये। यह एक अजीब विडम्बना है कि लोग जीते जी खुद श्रीराम शब्द के महत्व को न समझ कर शव यात्रा में किसी अलौकिक सत्ता में मनन करते रहते हैं। शायद निर्जीव शरीर उसे सुनता है कि नहीं ये तो नही मालूम पर शव यात्रा में शामिल लोगों को कुछ समय के लिये जरूर समझ में आ जाता है।
हर व्यक्ति ये सोचता है कि उसे सुन्दर मृत्यु नसीब हो। उसे कोई कष्ट न हो। समय आने पर उसे बिना किसी परेशानी के मृत्यु नसीब हो। ये उन्हें समझ में नहीं आता कि मृत्यु को सुधारने से मृत्यु नहीं सुधरती, हाॅ यदि जीवन में सुधार लाया जाय, श्रीराम द्वारा मोक्ष की आस रखी जाय तो निश्चय ही जीवन में मोक्ष का रास्ता खुला मिलेगा। मोक्ष का अर्थ है जीवन के मायावी कष्टों से मुक्ति और जन्म मृत्यु से हमेशा के लिये छुटकारा। जीवन को सुधारने श्रीराम का तारतम्य जोड़ने से मृत्यु पर जरूर हम अपना प्रभाव बना लेते हैं। जब मृत्यु आयेगी तब कुछ काम नही आयेगा। सारी उम्र की कमाई गयी दौलत भी एक लम्हा आपको उधार नही दिला पायेगा क्योंकि जब मृत्यु आयेगी उस समय कोई कुछ भी नही कर पायेगा। न तो कोई तन्त्र मन्त्र काम आयेगा न ही पैसा। सिर्फ आपके कर्म ही होगें जा उस समय आपको सद्गति और मोक्ष की ओर ले जा सकते हैं और इस जन्म और मरण के चक्रव्यूह से बाहर निकाल सकते हैं।
अगर जीवन के चन्द लम्हो को भी आप सार्थक करते हैं तो जीवन तो सॅभलेगा ही मृत्यु भी सॅभल जायेगी। प्रत्येक मनुष्य तो यह जानता है कि मृत्यु तो अपनी अमानत है, आनी ही है फिर भी अज्ञान के अन्धकार में भटकता हुआ इससे अनभिज्ञ रहता है। यह ऐसा विधान है कि जिसे मनुष्य अपने सद् कर्मो से अपने लिये नियन्त्रित कर सकता है पर स्वम् परमात्मा इसे बदल नहीं सकते।
‘‘माॅस के पुतले, कभी ना कर तूॅ भी इतना घमण्ड,
सब तेरा यूॅ देखते ही खाक में मिल जायेगा,
तेरा मै इक दिन अन्धेरे में कही खोकर मनुज,
कुछ क्षणों में तेरा सब कुछ राख में मिल जायेगा।’’
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