कुछ याद इन्हें भी कर लो,
समाजवाद के लिये जिसने अपना जीवन कुर्बान कर दिया,
ना पूर्ण आयु ना पूर्ण काम किन्तु अमर नाम,
जगन्नाथ सेल्ही
-अंजनी उपाध्याय
उ.प्र.के देवरिया जिले के बरहज तहसील में नन्दन वन में स्थित नन्दना वार्ड पश्चिमी में 1959 में जन्में जगन्नाथ सेल्ही बचपन से ही गरीबों के लिये सर्वस्व समर्पण करने अपनी पूरी ताकत से ओर लगन से उनको न्याय दिलाने की अदम्य साहस और उत्साह से कार्य में लग जाने के कारण सबके दिलों में अपना घर बना चुके थे। उनके शरीर में एक संत की दिव्य आत्मा निवास करती थी, तभी तो उनके पूरे जीवन काल में कोई उनका ऐसा आलोचक पैदा नही हुआ जो उनके उज्जवल कीर्ति पर उँगली उठा सके। जी हाॅ वो ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके असामयिक निधन पर विरोधी तो क्या क्षेत्र का जर्रा-जर्रा रोमाॅचित हो चला था। जो भी सुना कि गरीबों की लाठी आज भागलपुर की सपा की सभा में मंच पर लड़खड़ा गयी बस भागता और दौड़ता हुआ अश्रु पूरित नेत्रों से उस समाजवादी संत के द्वार आसुओं का श्रध्दा सुमन लेकर समर्पित होने लगा। बरहज इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं मिलता जिसके पास ना पद हो, ना सम्पत्ति हो, ना ही कोई व्यवसाय हो और ना ही कोई नौकरी हो और अपने और विरोधियों के आॅसुओं का इतना सागर उमड़ा हो जिसमें पूरा बरहज कर जन सैलाब डूब गया हो। जी हाॅ समाजवाद के नाम पर अपनी प्राणों की आहुति देने वाले कवि गोरख पाण्डे के बाद ये दूसरे व्यक्तित्व थे।
समाजवादी संत जगन्नाथ सेल्ही अपनी अंतिम सभा में जाने के कुछ घण्टे पूर्व सम्पदा टीम के सम्पादक अंजनी कुमार उपाध्याय से मिले और आधे घण्टे के समय में जबरन अपने पास से एक कप चाय पिलाया और कहा कि आज में सभा में सबको अपने समर्थन में मिला लूॅगा। मेरे प्रतिनिधि ने उनके वक्तव्य को उस समय उनकी राय से रिकार्ड कर लिया। शायद यह उनकी एक धरोहर सम्पदा के पास रह गयी जिसे कुछ समय पश्चात हम सम्पदा के वेव साईट पर आपकी सेवा में प्रस्तुत करेंगें। जगन्नाथ सेल्ही जिन्हें यहाॅ कर जनता प्यार से नेता जी कहा करती थी सबके लिये हर क्षण तैयार रहते थे। यह बात आज भी समझ में नहीं आती कि अपने जीवन पर्यन्त उन्होंनें कभी किसी से अपने लिये कोई मदद नहीे ली। उनका कोई अपना मददगार भी नहीं था फिर भी कैसे संसार के कठिन समुद्र में अपने जिम्मेदरियों का निर्वहन करते गये यह एक विलक्षण बात है। सम्पदा टीम उनके हर भाव को पहचान लेती थी। संत भाव वाले नेता जी के पास सत्य और प्रेम की अतुल सम्पदा थी और ये सम्पदा ईश्वर संत सदृश व्यक्तित्वों को ही उपहार में देता है। यह सत्य है कि संसार से विदा होते समय आँसुवों का सागर जिसके लिये जितना उमड़ता है वह ईश्वर उतने पवित्र धाम को प्राप्त करता है। जन प्रिय, जन नायक, गरीबों के सच्चे हितैषी, सन्त आत्मा जगन्नाथ सेल्ही को सम्पदा परिवार सम्पूर्ण बरहज समाज की ओर से हार्दिक श्रध्दाॅजलि देता है।
पण्डित छाँगुर त्रिपाठी
-अंजनी उपाध्याय
कुछ याद इन्हे भी कर लो...........
पूर्वाचल के इतिहास के अमर व्यक्तित्व
श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी उर्फ जीवन जी
-छाॅगुर त्रिपाठी का एक नाम जीवन जी भी था।
-इनकी रचनाओं को ब्रिटिश हुकूमत ने जब्त कर इन्हें नजरबन्द कर दिया था।
श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी उर्फ जीवन जी का जन्म गौरा जयनगर, बरहज जिला देवरिया में 11 जनवरी सन् 1891 में एक संस्कारित सनातनी ब्राहमण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री कृष्ण तिवारी था। श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी हिन्दी खड़ी बोली और भोजपुरी के सशक्त कवि थे। इनकी कविताओं से राष्ट्रीय जागरण तथा समाज सुधार के क्षेत्र में बहुत बड़ा कार्य हुआ है। स्वतन्त्रता संग्राम को गति देने की दिशा में श्री पण्डित छाँगुर त्रिपाठी जी का अप्रतिम योगदान रहा है। इनके उग्र राष्ट्रीयता का इसी से परिचय मिल जाता है कि इनके द्वारा प्रणीत सुदेशिया नाटक, स्वराज आल्हा, भूकम्प आल्हा, वीर सुभाष चन्द्र बोष आल्हा नामक कृतियाॅ ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी थीं। इतना ही नही, इसे लिखने का खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ा और ये अंग्रेजों द्वारा फैजाबाद जेल में नजरबन्द रहना पड़ा था। इनकी कृतियों में हृदयानन्द गीतावली का नाम विशेष रूप से चर्चित है। इनकी हास्य-व्यंग्य से सम्बन्धित भोजपुरी भाषा की तमाम कृतियाॅ अबतक अप्रकाशित हैं। जब ये फैजाबाद जेल में नजरबन्द थे तो उस जेल में सब चक्की चलाते हुए इनकी रचनाओं को सस्वर गाते थे। जिनकी कुछ पंक्तियाॅ इस प्रकार हैं-
‘‘सुराज धुनि बोल, ए जेल जाॅता।
लाल रंग गोहुआँ सफेद रंग पिाना,
कपट दिल खोल, ए जेल जाॅता,
सुराज धुनि बोल, ए जेल जाॅता।’’
इस गीत को जब पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी हारमोनियम पर गाकर जनचेतना जगाते थे तब और भी उत्साहपूर्ण वातावरण तैयार हो जाता था। पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी के बारे में बरहज क्षेत्र में तमाम किस्से और कहानियाॅ चर्चित हैं। ऐसा माना जाता है कि लोग उस जमाने में पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी का इन्तजार किया करते थे। इतना ही नहीं पण्डित जी बाबा राघवदास के अत्यन्त प्रिय थे। बरहज के शिक्षा जगत के स्तम्भ श्री राजनारायण पाठक ने मुझे बताया था कि अंजनी जब आश्रम में बाबा जी क्रोध पर किसी का वश नहीं चल पाता था तब बाबा जी को पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी ही कंट्रोल कर पाते थे। बाबा राघवदास जी इन्हें बहुत अधिक सम्मान देते थे।
इनके विस्तृत विवरण के लिये श्री मोती बी ए के संस्मरणों को विशेष रूप से अवलोकन करना पड़ा है। श्री मोती बी ए के अनुसार श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी की रचनाओं में ‘सुदेशिया नाटक’ भिखारी ठाकुर के विदेशिया नाटक को टक्कर देती थी। जनजागरण का मन्त्र फूॅकने वाला, बलिदान का भाव भरने वाला यह नाटक ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया। इनका स्वराज आल्हा, सुभाष बाबू का आल्हा, हृदयानन्द गीतावली, बरहना बाबा पर बाबा की रचनायें हैं जो अबतक अप्रकाशित हैं। इनकी रचना सुभाष बाबू का आल्हा, बाबा राघवदास जी को समर्पित है। इनकी रचनाओं के कुछ हास्य व्यंग्य को देखें- ‘‘सखि हो, हमरो बलसु पौने आठ भवन नहिं आवेे।’’ ‘‘ए सोगिया नवनों उजार कइलू टोला।’’ ‘‘बलमु जी फागुन भरि जनि जाई।’’ इनकी रचना ‘धर्म विलाप’, ‘काॅग्रेस का इतिहास’, ‘राजनैतिक भजन’ की अलग एक पहचान रही है। रचनाओ में स्पष्टवादिता बहुत साफ स्थापित है। इसके लिये पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी हमेशा याद किये जायेगें।
श्री पण्डित धर्मराज उपाध्याय
-अंजनी उपाध्याय
कुछ याद इन्हे भी कर लो...........
शिक्षा जगत के अनोखे व्यक्तित्व,
श्री पण्डित धर्मराज उपाध्याय
-विद्वान हिन्दी के पर मौलाना भी आगे बाअदब रहते थे।
-उर्दू, अरबी, फारसी, हिन्दी और संस्कृत के विद्वान रहे।
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श्री कृष्ण इण्टर कालेज, आश्रम, बरहज, देवरिया में सन् 1960 के दशक में शिक्षक के रूप में एक ऐसा भी व्यक्तित्व देदीप्यमान था जिसके आगे मौलवी और मौलाना भी फीके पड़ जाते थे। ऐसा क्यों न हो उर्दू, अरबी और फारसी पढ़ने के लिये जितने उर्दू के विद्यार्थी मौलाना के पास पढ़ने मदरसे में नहीं जाते थे उससे अधिक श्री कृष्ण इण्टर कालेज आश्रम बरहज में धर्मराज उपाध्याय के पास जाते थे। आज तक ऐसा संयोग देखने को शायद ही कहीं मिले कि कोई व्यक्तित्व ऐसा हो जो हिन्दी, संस्कृत के साथ उर्दू, फारसी और अरबी का भी विद्वान हो। 1950-60 के दशक में बरहज में बाबा राघवदास की प्रेरणा पर उनके आशीर्वाद से एक ऐसा महान व्यक्तित्व नगर के शिक्षा जगत में देदीप्यमान हुआ जिसको सामने आते ही सभी हिन्दू और मुस्लिम सब सम्मान में खड़े हो जाते थे। आज भी कई बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्होने धर्मराज उपाध्याय जी से शिक्षा ग्रहण की है और इस बाज को स्वीकार करते हैं। धर्मराज उपाध्याय स्थानीय नगर बरहज के देईडींहाॅ ग्राम में श्री पण्डित लालजी उपाध्याय के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। बाबा राघवदास की प्रेरणा से श्री कृष्ण इण्टर कालेज, आश्रम, बरहज, देवरिया में अध्यापक बने। आप एक लम्बे समय तक अध्यापन कार्य किया और इनके चलते नगर में हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल एक लम्बे समय तक कायम रही। आप की योग्यता को उग्रसेन सिंह, मोती बीए और दीनानाथ पाण्डे अपने काल में अपने संस्मरणों में जिक्र किया करते थे। आपने तमाम उर्दू, फारसी में रचनायें लिखीे पर समय के साथ ये रचनायें संकलित नहीे हो सकी। आपकी शिक्षा कामिल, फाजिल, विशारद थी। आप अपने समय में बरहज ब्लाक के प्रथम ब्लाक सभापति थे। आप जिला पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं। सत्यव्रत जी महाराज के आदेश से जीवन के अन्तिम समय में श्रीराम का संकीर्तन करते रहे।
पण्डित राम परीक्षण त्रिपाठी
-अंजनी उपाध्याय
जिनकी यादें मन मस्तिष्क को पावन कर देती हैं
पण्डित राम परीक्षण त्रिपाठी
-बरहज का आध्यात्मिक और साॅस्कृतिक इतिहास का सर्व प्रथम संकलन कर्ता
-सन्तों और साहित्यकारों से पूजित रहे पर नाम रहा गुमनाम
-इनकी पुस्तक से कई लोगों के भाग्य खुले, पर रह गयी अप्रकाशित
आज एक समय है जो कभी भूल के आप अपने क्षेत्र के साॅस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक धरोहर के सन्दर्भ में पता करने को निकल पड़े तो नयी प्रतिभायें भोजपुरी के विशेषण में ‘दाॅत चियार के खड़ी’ हो जायेंगीें। उन्हे अपने क्षेत्र के साॅस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक धरोहर की कोई जानकरी नहीं होती। ये 80 प्रतिशत प्रतिभायें हैं जो ये नहीं जानती कि कभी एक समय था जब बरहज के मार्ग पर चलने वाले लोगों की आॅखें सिर्फ अपने को गौरवान्वित ही महसूस नहीं करती बल्कि आज के समय में इन बुजुर्गों के शब्दाशीर्वाद से नयी पीढ़ी की प्रतिष्ठा बची हुयी है।
सम्पदा आपको बरहज के कुछ साॅस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक व्यक्तित्व को आज याद दिला रहा है। इनमें कुछ नाम समय के अन्धकार में डूबते नजर आ रहे हैं और कुछ नाम लोगों की यादों में है। इन नामों में सर्व प्रथम महान सन्त गायत्री पुत्र, बाबा गयादास बरनवाल, बेचू साह, श्री नारायण शुक्ल, श्री यंज्ञेश्वर पाण्डेय, श्री दीप नारायण पाण्डेय, आचार्य महेन्द्र शास्त्री, कुसुम बन्धु, राज मंगल दीक्षित, छाॅगुर त्रिपाठी उर्फ जीवन जी, श्री सिंहासन तिवारी ‘कान्त जी’, धर्मराज उपाध्याय, श्री राम परीक्षण तिवारी, सीताराम रावत, इन्द्रेश रावत, दीना नाथ पाण्डेय, श्री इन्द्रासन सिंह, श्री हंसनाथ सिंह, डाक्टर रहमान साहब, श्री रामानुज वैद्य, श्री अनिरूद्ध वैद्य जैसे कई नाम हैं जिन्हे लोग विस्मृत करते जा रहे हैं। सम्पदा का वेव इन्हीं हस्तियों के अमर इतिहास को स्थापित करने के लिये प्रयास रत है। इसी श्रॅृखला में आज हम बरहज के एक एक ऐसे शाख्शियत को सामने ला रहा हूॅ जिनके स्मरण मात्र मन मस्तिष्क को पावन कर देती हैं उस विभूति का नाम है पण्डित राम परीक्षण त्रिपाठी।
इनका जन्म 1 दिसम्बर 1903 में बरहज के लवरछी गाॅव में हुआ था। इनके पूर्वज बेल्थरा रोड के पास हल्दी घरना गाॅव के मूल निवासी थे जो आकर बरहज के लवरछी में अपना निवास बना लिये। इनके पिताजी का नाम श्री मातादीन त्रिपाठी था।
अमरशहीद रामचन्द्र विद्यार्थी
अमरशहीद रामचन्द्र विद्यार्थी रामचन्द्र विद्यार्थी काजन्म एक अप्रैल 1929 कोएक गरीब प्रजापति परिवार में देवरिया जनपद के नौतनहथियागढ़ गाव मे हुआ था ।इनके जन्म के सात दिन बाद भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय असेंबली मे बम फेका था।उस समय साइमन साहब भी बतौर मेहमान असेंबली मे बैठे थे ।इनके पिता का नाम बाबूलाल और माता का नाम मोतीरानी देवी था।प्राथमिक शिक्षा के
लिए इनका नामांकन सहोदरपट्टी गांव के विद्यालय मे कराया गया।
बचपन से ही
रामचन्द्र कुशाग्र बुद्धि के थेऔर आस पास के प्रति संवेदनशील रहते थे ।बचपन में इनके दादा भरदुल प्रजापति वीरो की कहानिया सुनाया करते थे।यही से इनके जेहन मे देश की आजादी का जज्बा अंकुरित हुआ।प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद इनका नामांकन नौतन 12 किमी. दूर बसंतपुर धूसी विद्यालय मे कराया गया।
इनकी प्रखर बुद्धि से प्रभावित होकर विद्यालय के गुरुजन इनसे प्यार करते थे।रामचन्द्र अपने तीन भाइयों से बड़ें थे।इनके बाद क्रम से गोपीनाथ, रामबड़ाईऔर रामपरिजन तीन भाई थे।उस वक्त 8अगस्त 1942 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन बम्बई मे चल रहा था, अधिवेशन में कांग्रेस ने अंग्रेजों भारतछोड़ो का प्रस्ताव पारित कर दिया।गांधी जी ने भारतीय जनता के उत्साह को देखते हुए करो या मरो का नारा दे दिया।इसके पहले किसी अधिवेशन में यह नारा नहीं दिया गया था।अधिवेशन के रुख को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने अधिवेशन स्थल पर डेरा डाल दिया था और चप्पे चप्पे पर पुलिस व खुफिया एजेंसी के जवान तैनात कर दिये थे ।अंग्रेजों भारतछोड़ो प्रस्ताव ज्योहीं पारित हुआ, पुलिस फोर्स ने चारों तरफ से सक्रियता दिखाई और रातोरात कांग्रेस के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये।गांधी और नेहरू भी गिरफ्तार कर लिये गये।इनसे निचले पायदान के नेता अधिवेशन स्थल से भाग निकले और वे अपने अपने क्षेत्रो मे जाकर आंदोलन को सफल बनाने केलिये जनता को जागरूक करने लगे नेताओ की गिरफ्तारी की खबर जंगल में आग की तरह पूरेदेश मे फैल गई, जनता सड़क पर आ गयी,पूरे देश में तूफान मच गया।सरकारी कर्मचारी भी जनता के साथ आ गये।नौजवान, स्त्री पुरूष सभी अंग्रेजों भारतछोड़ो का नारा लगा रहे थे।विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई।लोगों ने सरकारी कार्यालयों, कचहरी थानो पर अपना कब्जा जमा लिया।अंग्रेजों ने जनक्रांति को बंदूक की गोलियों से दबाने का प्रयास किया।।
क्रांति की वह आग बसंतपुर धूसी क्षेत्र में भी फैली और पूरे क्षेत्र को अपने आगोश में ले लिया।14 अगस्त को बसंतपुर धूसी कालेज से क्रातिकारियों का एकदल तिरंगा झंडा लिये ,ब्रिटिश हुकूमत मुर्दाबाद, अंग्रेजों भारतछोड़ो का नारा लगाते हुए देवरिया मुख्यालय की तरफ आगे बढ़ा।इस टोली का नेतृत्व बसंतपुर धूसी के प्रधानाध्यापक यमुना राव कर रहे थे।इनकलाब जिंदाबाद के नारे से आकाश गूंज रहा था और पैदल मार्च करते हुए यह टोली देवरिया कचहरी में जिलामजिस्टेट के कार्यालय पर पहुंच गई।इसटोली के साथ देवरिया नगर सहित आसपास के क्षेत्रों के लोग भी जुलूस में शामिल हो गये थे, हजारों की तादात थी।मजिस्ट्रेट कार्यालय पर लगे यूनियन जैक को उतारकर तिरंगा फहराना था।
अभी लोग सोच बिचार कर ही रहे थे कि यह 13 वर्ष का क्रातिकारी बालक तिरंगा लेकर आगे बढ़ा और झण्डा फहराने के लिए अन्य साथियों की मदद से ऊपर छत पर चढ़ गया।अंग्रेजी फौज के साथ ज्वाइंट मजिस्ट्रेट ठाकुर उमराव सिह वहां पहुंच गया और लाठीचार्ज करा दिया।भगदड़ मच गई किन्तु रामचन्द्र कहा ं भागने वाला था, इसके अंदर तो देश को आजाद कराने का जज्बा था।मजिस्ट्रेट ने इसे बच्चा समझकर नीचे न उतरने पर गोली मारने की धमकी दी किन्तु रामचन्द्र ने आनन फानन में तिरंगा फहरा दिया।मजिस्ट्रेट अपने को रोक न सकाऔर गोली चलाने का आदेश दे दिया।रामचन्द्र अपना सीना अंग्रेजी बंदूकों की तरफ कर लिया।गोली चलीऔर रामचन्द्र के सीने में लगी,रामचन्द्र धड़ाम से नीचे गिरे ,वे खून से लतपथ थे।उनके साथियों ने उन्हें लच्छीराम पोखरे पर लाया जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली ।उनके पार्थिव शरीर को शायंकाल चार बजे नौतनहथियागढ़ के पास छोटी गण्डक पर लाया गया।यह खबर जंगल मे आग की तरह क्षेत्र में फैली और हजारों की संख्या में लोग नदी के घाट पर जमा हो गये।उनकी शरीर को तिरंगे मे लपेटा गया और अग्नि को समर्पित कर दिया गया ।यहां चिता जल रही थी और उधरअंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियां पिघल रही थी।
1949 मे पंडित नेहरू नौतनहथियागढ़ आये तथा उनके परिवार वालों से मिले और शहीद के प्रतीक के तौर पर एक चांदी की थाली, एक गिलास उनके परिवार वालों को सुपुर्द किये।1942 की इस घटना के बाद परिवार की माली हालत बहुत खराब हो गई, खाना बदोश की जिन्दगी जीने के लिए यह परिवार मजबूर हो गया।इनके घर को भी अंग्रेजी फौज ने जला दिया था।गाव तथा आसपास के क्षेत्र दमनचक्र चला।आजादी के बाद सरकार ने इस परिवार को नजरंदाज कर दिया, यहां तक की काफी प्रयास के बादभी सरकारी तौरपर अमरशहीद रामचन्द्र की मूर्ति आजतक कहीं नहीं लगायी गयीजो अत्यंत शर्मनाक बात है ।
रामबिलास प्रजापति.
अध्यक्ष अखिल भारतीय प्रजापति कुम्भकार महासंघ देवरिया व सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी।
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