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Maa Sarayu Ke Awtran ki katha/ Sarayu Ganga Milan

 मा सरयू के अवतरण की कथा

                           मा सरयू और मा गंगा के संगम की मार्मिक कथा                                   

 

                                    विष्णु के नेत्र से निकलने के कारण माॅ सरयू को नेत्रजा, वशिष्ठ के प्रयास से अवतरण होने के कारण वाशिष्ठी, मानसरोवर से निकलने के कारण मानसी, इसके अतिरिक्त नन्दिनी, बाण गंगा और घाघरा भी कहा जाता है।             


                                

                -अंजनी कुमार उपाध्याय

         कितनी बड़ी विडम्बना है कि करोणों वर्ष से बहती रही सरयू माॅ का वास्तविक इतिहास जब सम्पदा टीम ने जानना चाहा तब इसका  इतिहास  नेट पर भी खोजने पर वास्तविक रूप से नहीं मिला। सैकड़ों विद्वानों ने इस सन्दर्भ में  अनभिज्ञता  जाहिर की।  इसे  हमें  पूरी  तरह  जानने  की  प्रेरणा  बरहज के संत तुलसीदास घाट पर नगरपालिका  अध्यक्ष अजीत जायसवाल द्वारा आयोजित माॅ सरयू की आरती में सुनने के बाद मिली। इसके लिये सम्पदा टीम नगरपालिका अध्यक्ष अजीत जायसवाल और आचार्य कृपानारायण मिश्र का आभारी है जिनके कारण आज माॅ नेत्रजा का  इतिहास सम्पदा  विश्व  पटल  पर  डाल  रही है। माॅ सरयू के अवतरण की कथा सबसे पहले आचार्य कृपानारायण मिश्र ने अपनी पुस्तक  में  संकलित किया है। यह एक विलक्षण कार्य है। इस कार्य में आचार्य कृपानारायण मिश्र ने आनन्द रामायण के यात्रा काण्ड का सन्दर्भ दिया है। इसमें कोई शक नहीं कि मानसरोवर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक के क्षेत्र में सरयू तट पर स्थित बरहज का सम्पदा न्यूज चैनल, आज माॅ नेत्रजा का वास्तविक इतिहास नेट पर स्थापित कर अपने को गौरवान्वित महसूस करता है।

     आर्य संस्कृति में वेदों के प्रभाव को देखते हुये शंखासुर व्यथित हो गया। वह वेदों का हरण कर लिया। समस्त पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच गयी। समस्त ऋषि जन ब्रहमा जी के शरण में गये। ब्रहमा जी ने उनकी व्यथा से द्रवित होकर विष्णु से शंखासुर के बध की याचना की। विष्णु जी ने शंखासुर का बध किया। बध के बाद जब वेद पुनः ब्रहमा जी के सामने आया तो उनकी हार्दिकता और विहवलता देखकर विष्णु जी के नेत्रों में आॅसू गये। ये अश्रु कही पृथ्वी पर गिरकर प्रलय मचा दें यह सोचकर ब्रहमा जी ने उसे अपने कमंडल में ले लिया। करोड़ों वर्ष तक ब्रहमा जी के कमंडल में रहने के बाद भगवान विष्णु के अश्रु ने अपने को स्थापित करने की याचना ब्रहमा जी से किया। ब्रहमा जी ने उसे मानसरोवर में ले जाकर स्थापित कर दिया। मानसरोवर का उस समय नाम बिन्दुसर था। इस स्थान पर कई पीढ़ी बाद इसी वंश के राजा मान्धाता ने तपस्या की और इसका नाम मानसरोवर रखा था।

   सूर्य वंशी शासक मनु ने अयोध्या नगरी बसाई। उनके वंशज इक्ष्वाकु को अयोध्या में माॅ सरयू की आश्यकता महसूस हुई। वशिष्ठ की प्रेरणा से इक्ष्वाकु ने शंकर जी की आराधना की। मानसरोवर से माॅ सरयू प्रकट हुई, इनकी विनती को स्वीकार किया और वहाॅ से सरयू की धारा फूट निकली। इस प्रकार इस पृथ्वी पर सर्व प्रथम  माॅ सरयू का आगमन हुआ, जो मानसरोवर से निकल कर इक्ष्वाकु के इच्छानुसार उनके रथ का अनुगमन करती हुयी कतरनियाघाट से 0प्र0 में प्रवेश कर गयी। नेपाल में इन्हें करनाली या कौरियाला नाम से जाना गया। माॅ सरयू इक्ष्वाकु के इच्छानुसार उनके रथ के पीछे-पीछे बढ़ती गयीं। वह बाणों से मार्ग बनाते गये। इस कारण इनका एक नाम बाण गंगा भी बाद में पड़ गया। यह ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को अयोध्या पहुॅची। पुनः इक्ष्वाकु के इच्छानुसार दोहरीघाट, बरहज, भागलपुर, बलिया होते हुए बंगाल के समुद्र में जाकर मिल गयीं। मा सरयू की सहायक नदियाॅ शारदा नेपाल में, बूढ़ी सरयू अयोध्या में, अचिरावती अर्थात राप्ती बरहज में, हिरण्यवती अर्थात छोटी गण्डक चुरियाॅ में आकर मिली। माॅ सरयू के आगमन के कई हजार वर्ष बाद इसी कुल में उत्पन्न राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया और सफल रहे। माॅ गंगा, माॅ सरयू से बलियाॅ में मिलीं।

    मार्मिक प्रसंग माॅ गंगा के मिलन का है। माॅ गंगा का अवतरण भगवान विष्णु के पाॅव से जबकि माॅ सरयू का अवतरण भगवान विष्णु के नेत्र से है। दोनों नारायणी हैं।  एक पिता की सन्तान होने से सगी बहनें हैं। नेत्र का स्थान उॅचा होने से सरयू बड़ी बहन हैं। गंगा छोटी बहन हैं। ऐसा कथाओं में वर्णित है कि माॅ गंगा को भगवान शंकर ने वरदान दिया था कि कोई भी नदी तुमसे मिले पर संगम के बाद नाम गंगा का ही लिया जायेगा। वैसे विष्णु के नेत्र से निकलने के कारण माॅ सरयू को नेत्रजा, वशिष्ठ के प्रयास से अवतरण होने के कारण वाशिष्ठी, मानसरोवर से निकलने के कारण मानसी, इसके अतिरिक्त नन्दिनी, बाण गंगा और घाघरा भी कहा जाता है। इक्ष्वाकु के 19 वीं पीढ़ी में भगीरथ आये। इनके प्रयास से गंगा आयीं। भागीरथी होने के कारण माॅ गंगा राज कन्या है। वाशिष्ठी होने के कारण माॅ सरयू गुरू कन्या हैं। अपनी छोटी बहन गंगा को पाकर माॅ सरयू ने अपने अंक में भर लिया। माॅ गंगा राज कन्याभागीरथीहोने के कारण गुरू कन्या माॅ सरयूवाशिष्ठीके चरणों में लिपट गयीं। बड़ी बहन माॅ सरयू की नेत्रों में प्रेमाश्रु छलक आये। अपनी प्रिय छोटी बहन माॅ गंगा को अपने हदय से लगाती हुयी माॅ सरयू ने आशीर्वाद दिया कि यहाॅ से आगे अब गंगा नाम ही संसार लेता रहेगा। यह भक्तिदायिनी माॅ सरयू के अवतरण की कथा को आनन्द रामायण के यात्रा काण्ड के 4 सर्ग के अनुसार मुद्गल ऋषि ने श्री राम को सुनाया था।  

  यह है माॅ सरयू का महात्मय, जो बरहज को अपने प्रभाव से इतना सिद्ध बना दिया कि यह क्षेत्र ही सिद्ध संतों का एक आश्रम बन गया। सरयू तट पर स्थित बरहज में सम्पदा का उद्गम है यह सम्पदा अपना सौभाग्य समझता है और माता सरयू का नमन करता है।

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