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Jeevan Darshan

 जीवन-दर्शन 

अनुभूतियाॅ जीवन की: कभी धूप कभी छाॅव  


मोनिका त्यागी, लखनऊ, 

संक्षिप्त परिचय       

सनातन संगठन की प्रभारी, चेतना फाउण्डेशन की उपाध्यक्ष, अंग्रेजी और दर्शन में परास्नातक की योग्यता, सनातन शिरोमणि सम्मान से गौरवान्वित, वर्षों तक आदर्श शिक्षिका के रूप में कार्य, लखनऊ में नारी प्रगति के लिये समर्पित ।  



    जिन्दगी का सवरूप धूप और छाॅव जैसी होती है। कभी प्रकृति और साॅसारिक समस्याओं की चिलचिलाती धूप में इन्सान जलता रहता है और चलता रहता है। अचानक प्राकृतिक या सामाजिक सहारा रूपी छाॅव मिलने पर खुश और संतुष्ट हो जाता है। उस वक्त उसे उस छाॅव की खुशी की जो अनुभूति होती है उसकी कीमत का एहसास हो जाता है। इन्सान जो हर पल सुख की छाॅव में ही जीता आया हो और कभी उसे समस्याओं की चिलचिलाती धूप का सामना ही न किया हो और उसे अगर साॅसारिक दुःखों के तीव्र धूप से गुजरना पड़े तो वह खुद सहन नहीं कर पाता, उसका असीमित आत्मबल टूटने लगता है। यही साॅसारिक मानव के जीवन के सुख और दुःख की स्थिति होती है। दुःख से गुजरने वाला इन्सान सुख की अहमियत को समझता है और दूसरे की पीड़ा को भी महसूस करता है पर हमेशा सुख में रहने वाला व्यक्ति दुःख को नहीं समझता और इसका असर ऐसा पड़ता है कि वो किसी पीड़ा को समझने लायक भी नहीं रहता और जिस दिन उसको दुःखों का सामना करना पड़ता है वो लड़खड़ाने लगता है और फिर टूट जाता है। ऐसा भी देखा गया है कि कभी-कभी हमेशा दःुखों से पीड़ित रहने वाला इन्सान ऐसा पत्थर बन जाता है कि उसमें निगेटिव ऊर्जा घर कर जाती है और वो दूसरों के सुख को भी नहीं देख पाता और प्रतिद्वन्दिता के आक्रोश में ऐसा जकड़ता है कि स्वंम को विकट स्थिति से निकालने के बजाय दूसरों को कष्टों के दल-दल की स्थिति में पहुॅचाने के लिये दृढ़संकल्पित हो जाता है। 

अत्याचार, जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने का अदम्य साहस, सनातन संगठन की प्रभारी, चेतना फाउण्डेशन की उपाध्यक्ष, अंग्रेजी और दर्शन में परास्नातक की योग्यता, सनातन शिरोमणि सम्मान से गौरवान्वित, वर्षों तक आदर्श शिक्षिका के रूप में कार्य, लखनऊ में नारी प्रगति के लिये समर्पित । 

 

  आज प्रत्येक आदमी की ऐसी धारणा बन गयी है कि वह अपनी पसन्द नापसन्द की हदें खुद ही तय कर रहा है। उसी में उसे अपनी जिन्दगी रास आ रही है। जब दूसरे लोग इन हदों को तय करते हैं तो ये हदें केन्द्र बिन्दु बन जाती हैं तब आदमी को अपने जीवन से मोह भंग होने लगता है और वो जीवन समाप्त करने में ही उसे रास आता है। उसे ऐसा लगता है कि संसार एक शतरंज की बिसात है और हम एक उसके मोहरे है। 

   ‘‘शतरंज की बाजी खेली गयी, बस मोहरा मुझे बनाया गया, 

    रोशन महफिल करने के लिये, बस मेरा वजूद जलाया गया।’’ 

क्यों कोई किसी को वैसे नहीं अपनाता जैसा वो ढला होता है। क्यो हम किसी को बदलने की कोशिश करते हैं और जब ऐसी कोई कोशिश की जाती है तो रिश्ते खराब होने लगते हैं और फिर ऐसा दौर शुरू होने लगता है कि प्रत्येक चरित्रवान एक दूसरे पर इल्जाम थोपने लगता है। यह निर्विवाद है कि प्रकृति हर कोई एक जैसा नहीं बनाती, सबकी सोच अलग समझ अलग होती है। समझने और समझाने का तरीका भी साॅसारिक जीवन का एक महत्वपूर्ण शिक्षा का आयाम होता है। 

    ‘‘जीवन जीना आसान नहीं, गम भी छुपना आसान नहीं, 

     जीना सीखा जो गर कोई, साधारण  वह इन्सान नहीं।’’ 

दुनियाॅ में यदि हर कोई एक जैसा तो संसार का स्वरूप जरा सोचे कैसा होगा। विभिन्नतायें होने के कारण ही ये संसार इतना खूबसूरत माना जाता है। धूप के बाद छाॅव, सूखे के बाद बारिस, दुख के बाद सुख, र्दद के बाद जो खुशी मिलती है उस आनन्द की अनुभूति उसी को होती है जो हर वस्तु को उसी रूप में उसे स्वीकार करे। 


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