वर्षों से शासन से उपेक्षा के शिकार, कुष्ठ रोगियों की त्रासदी
निराश्रय कुष्ठाश्रम ही इनका एकमात्र सहारा
-शासन से उपेक्षित कुष्ठाश्रम
-कुष्ठाश्रम के बच्चों के लिये कोई स्कीम नहीं
‘‘अगर कुष्ठ रोगियों के लिये ऐसी ही उपेक्षा सरकार द्वारा होती रही तो गाॅधी, विनोवा भावे और राघवदास के आदर्शों का क्या जबाव होगा।’’
मोनिका त्यागी
विशेष प्रतिनिधि, सहारनपुर
जब देश आजाद हुआ था तो ऐसा लगा था कि अब इस देश से अन्य संक्रामक रोगों की तरह कुष्ठ रोग भी हमेशा के लिए चला जायेगा। ऐसा क्यों न जनता आस लगाये, महात्मा गाॅधी, विनोवा भावे, राघवदास जैसे संत इस रोग के उन्मूलन के लिये अपना सब कुछ समर्पित कर चुके थे पर आज कुष्ठाश्रम में रहने वाले रोगियों का सहारा केवल कुछ नेकदिल लोगों तक सीमित रह गया है। सरकार तो जैसे आॅख मूॅद कर बैठी हुई है।
निराश्रय कुष्ठाश्रम, सहारनपुर, एक लम्बे समय से कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिये समर्पित है। 1964 से 38 कुष्ठ परिवार यहाॅ रहते हैं। निराश्रय कुष्ठाश्रम के पास अपने सहयोगियों के दम पर कुछ सुविधा मुहैया हो जाता है पर शासन ने जैसे यह ठान रखा हो कि उसे इन रोगियों से कोई लेना देना नहीं। इनके पास रहने के लिये आवास की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। कच्चे आवास में ये कुष्ठ रोगी रहते हैं। नगर के सम्भ्राॅत लोग और कमेटी के समर्पित सदस्य इन्हें भोजन और वस्त्र दान करते रहते हैं।
अन्य देशों में आज कुष्ठ रोग का सफाया होता जा रहा है जब कि भारत में उपेक्षा के चलते इस रोग की अभी भी भयावहता बरकरार है। सरकार के आज सारे आॅकड़े खोखले साबित हो रहे हैं। इससे भी बड़ी विडम्बना ये है कि कुष्ठाश्रम में रहने वाले वे बच्चे जो इस रोग से पूरी तरह मुक्त हैं उनके रोजगार के लिए सरकार के पास क्या योजना है।
भारत वर्ष उन सन्तों की भूमि है जिन्होने कुष्ठ उन्मूलन का सपना सॅजोये हुए थे। आज जबकि कागजों में सैकड़ों कार्य कुष्ठ सहायतार्थ क्रियान्वित हो रहे हैं उसका कुछ प्रतिशत ही यदि सहारनपुर स्थित निराश्रय कुष्ठाश्रम के लिए विभाग समर्पित करे तो यह पुण्य का कार्य होगा। वैसे निराश्रय कुष्ठाश्रम ने शासन से सहायता की याचना की है देखना है कि शासन के अधिकारियों की कब नजरें इनायत होती है।
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