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                              कर्ण झील 

                         कर्ण नगरी करनाल से

                          मोनिका त्यागी राणा

                         सम्पादक-सम्पदा न्यूज   

                           लखनऊ कार्यालय 

                          रिपोर्टिंग, हरियाणा से 

करनाल शहर का नाम कर्ण के नाम पर ही रखा गया। कर्ण झील भी करनाल शहर से कुछ ही दूरी पर है। कर्ण इसी झील में नहाया करते थे। जिसे आज कर्ण झील कहा जाता है।


            कर्ण महाभारत के एक महत्वपूर्ण योद्धा थे। दुर्वासा ऋषि के वरदान से कुन्ती ने सूर्य का आह्वान करके कौमार्य में ही कर्ण को जन्म दिया था। लोक लाज के भय से कुन्ती ने उन्हे नदी में बहा दिया था। गंगा किनारे हस्तिनापुर के सारथी अधिरथ को कर्ण मिले और वे उस बालक को अपने घर ले गये। कर्ण को अधिरत की पत्नी राधा ने पाला इसलिए कर्ण को राधेय भी कहते हैं। 

    कुन्ती-सूर्य पुत्र कर्ण को महाभारत का एक महत्वपूर्ण योद्धा माना जाता है। कर्ण के धर्म पिता तो पाण्डु थे लेकिन पालक पिता अधिरथ और पालक माता राधा थी। कर्ण दानवीर के रूप में प्रसिद्ध थे। वो इतने बड़े दानवीर थे कि अपने कवच कुण्डल दान में दे दिये थे और अंतिम समय में सोने का दांत भी दे दिया था। 




    कर्ण की शक्ति अर्जुन और दुर्योधन से कम नहीं थी। उसके पास इन्द्र द्वारा दिया गया अमोघाÛ था। 

    आज मै अपने इस लेख में आपको अवगत कराने जा रही हूॅ कर्ण के जन्मस्थान करनाल की। करनाल का शुमार हरियाणा के प्रमुख शहरो में है, ऐसा माना जाता है कि यह शहर राजा कर्ण द्वारा स्थापित किया गया था। माना जाता है जब राजकुमारी के लिए आयोजित तीरअंदाजी प्रतियोगिता में कर्ण ने अर्जुन को चुनौती दी थी तो अर्जुन ने ये कहते हुए उसकी चुनौती अस्वीकार कर दी, कि ना तो कही के राजा हो, ना ही राजकुमार। तब दुर्योधन ने सबके सामने कर्ण का तिलक कर के उसे अंगदेश का राजा घोषित किया और उसे अंगराज कर्ण कहकर पुकारा। 

    कर्ण बहुत बड़े दानवीर थे। उनके पास से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता था। करनाल शहर का नाम कर्ण के नाम पर ही रखा गया। कर्ण झील भी करनाल शहर से कुछ ही दूरी पर है। 

    शाÛों के अनुसार प्रसिद्ध योद्धा कर्ण उन दिनों इसी झील में नहाया करते थे। जिसे आज कर्ण ताल या कर्ण झील कहा जाता है। इसी झील मे कर्ण ने नहाने के बाद अपना प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण सुरक्षात्मक कवच भगवान इन्द्र को दान कर दिया था। 

    महाभारत युद्ध के समय भगवान कृष्ण यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुण्डल है, तब तक उसे कोई नही मार सकता। ऐसे मे अर्जुन की सुरक्षा सम्भव नही। महाराज पाण्डु पत्नी कुन्ती ने मुनि दुर्वासा के वरदान द्वारा धर्मराज, वायुदेव तथा इन्द्र का आह्वान कर तीन पुत्र मांगे थे। इन्द्र द्वारा ही अर्जुन का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदायशी कवच और कुण्डल हैं, वह युद्ध में अजेय रहेगा। दोनों ने मिलकर योजना बनाई और इन्द्र एक विप्र के वेश में कर्ण के पास पहुॅचे। उस समय कर्ण इसी झील मे स्नान कर रहे थे। इन्द्र विप्र के वेश मे दान मांगने लगे। कर्ण ने कहा जो मांगना है मांगो। विप्र बने इन्द्र ने कहा पहले आप वचन दें कि मै जो मांगूगा आप दोगे। कर्ण ने तैश मे आकर इसी झील का जल हाथ मे लेकर वचन दे दिया। तब इन्द्र ने उनके कवच और कुण्डल दान मे मांग लिये। दानवीर कर्ण ने बिना एक क्षण भी गॅवाए अपने कवच और कुण्डल दान मे उनको दे दिये। 

    इसी कारण इस झील का नाम कर्ण झील पड़ा। 

    आज यह झील करनाल का पर्यटन स्थल है। इसको आधुनिक रूप दिया गया है। यहाॅ लोग दूर-दूर से घूमने आते है। इसमे बोटिंग की व्यवस्था भी की गयी है। इसके आस-पास का माहौल हरियाली से भरा हुआ है।        


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