आदिवासी जनजाति की धरोहर माँ बंजारी देवी का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना
अंजनी कुमार उपाध्याय
आदिवासी समाज की देवी हैं माॅ बंजारी
यहाॅ बलि नही दिया जाता, केवल सात्विक पूजन अर्चन होता है।
यहाॅ प्रत्येक धार्मिक कार्यों में इनकी पूजा की जाती है।
बरहज नगर का नाम धार्मिक नगरी के रूप में है। यहाँ पुराने शिव मन्दिर, वैष्णव मन्दिर, जैन मन्दिर, स्वर्ण मन्दिर सहित कई प्राचीन संतो की स्थली है। यहाँ अभी कई ऐसे धार्मिक मन्दिर है जिन पर किसी इतिहासकार या पुरातत्व वेत्ता का ध्यान नहीं गया है। इन्हीं प्राचीन धर्म स्थलों में एक स्थल प्राचीन जमाने के बंजारों की देवी की सिद्ध स्थली बंजारी माँ का स्थान है।
बंजारी माँ का यह मन्दिर अभी तक अपना विशालतम् रूप धारण नहीं कर सका है। परन्तु इस स्थान के नीचे और आस-पास हजार वर्ष पूर्व के साक्ष्य खुदाई में मिल जाते है। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज तहसील के नन्दना वार्ड पश्चिमी मुहल्ले में स्थित यह बंजारी माँ का स्थान अति सिद्ध स्थान यहाँ के निवासी मानते है तथा लगभग सभी लोग हर शुभ कार्य में माता का आशीर्वाद लेने उनके स्थान पर पहुँचते है। यहाँ का इतिहास यह है कि लगभग 850 वर्ष पूर्व जब यह एक घने जंगल के रूप में था तो यहाँ आदिवासी और बंजारों की प्रजातियाँ बसी हुई थी वे अपना ईष्ट देवी इन्हें मानते थे। ऐसी कथा है कि उनकी रक्षा के लिए कभी किसी देवी का साक्षात्कार इस स्थान पर उनके पूर्वजों को हुआ था और उनके पूर्वज उस देवी का स्थान बना कर उसकी पूजा अर्चना करने लगे। ये बंजारे अपने हर काम इस देवी माँ की अनुमति प्राप्त कर करते थे। यहीं मन्दिर से 500 मीटर दूर घाघरा नदी बहती है तथा लगभग 5 मील दूर घाघरा और राप्ती का संगम भी है। यह स्थान घने जंगलों में होने के कारण उन्हें मुस्लिम आक्रमणकारियों से छापामार युद्ध करने में पूरी सफलता भी मिलती थी। अपनी सफलता पर वो और भी अधिक देवी माँ की शक्ति को समर्पित हो जाते थे।
लगभग 600 वर्ष पूर्व नदी तट के आस-पास बरहना बाबा के आगमन से यह स्थान एक धर्म स्थल बनने लगा। लोगों की भीड़ सैकड़ों वर्ष तक उनके मजार के दर्शन से बरहज के नाम से प्रतिष्ठित करने लगी। वर्षों पूर्व यहाँ श्री राम शरण दास निषाद ंने देवी स्थल को साफ सुथरा कर उसे एक टीले का रूप दे दिया। कहा जाता है कि उनका जीवन भी देवी माँ के प्रति समर्पित हो गया। वह जन समस्याओं को माँ के आशीर्वाद से दूर कर देते थे। इनके प्रभाव में आकर यहाँ के सम्पन्न सेठ बेचू साहू भी इनके पास आया करते थे। माँ के प्रभाव से प्रभावित होकर श्री अनन्त महा प्रभु ने माँ की स्थान से 150 मीटर दूर अपनी कुटिया बना डाली। इनके मन्दिर पर बाबा राघव दास जी भी आया करते थे। प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वनाथ त्रिपाठी भी इस माँ को अपना ईष्ट मानते थे।
ऐतिहासिकता और अकूत सम्पदा समाहित किये यह देवी माँ का स्थान अलौकिक चमत्कारों की कहानियाँ भी अपने में संजोये हुए है। आस पास के बुजुर्ग कहते है कि माँ रात्रि में विचरण करती है। वो इनसे मिलने और देखने का दावा भी प्रस्तुत करते है। इनके प्रभाव में आकर यहाँ के देवी माँ के भक्त बेचू साहू ने अपनी तमाम सम्पत्ति किसी जमाने में दान कर दी थी। आज भी बंजारी माँ के नाम से पुराने रिकार्ड निकाले जाये तो कुछ जमीने इनके नाम से मिल जायेगी लेकिन कोई समिति या संस्था माँ के मन्दिर के लिए न होने के कारण वह लावारिस स्थिति में पड़ा हुआ है। अभी शीघ्र ही माँ के प्रताप से प्रभावित होकर किसी गुमनाम व्यक्ति ने माँ के द्वार तक रोड निर्माण करवा डाला। स्थानीय सांसद कमलेश पासवान ने प्रकाश की स्थायी व्यवस्था की है। इस माँ के स्थान पर लगा पाकड़ का वृक्ष की आयु का अनुमान लगाना कठिन है। माँ के दाहिने स्थित वृक्ष पर नाग की आकृति स्पष्ट देखी जा सकती है। इस वृक्ष के तने को यदि बड़ा करके देखा जाय तो उसमें कई तरह की प्रेत आकृतियाँ कैद दिखाई पड़ती है। दो माह पूर्व किसी चोर ने माँ के मन्दिर से कुछ सम्पदा चुरा ली। दो दिन बाद रात को सारा सामान माँ के दरबार में उस चोर ने रख कर क्षमा याचना कर कभी चोरी न करने का माँ को वचन दिया। माँ के मन्दिर में यहाँ के निवासी कई बार शाकाहारी फल, भोजन और वस्त्र चढ़ाते है।
इस पर आज तक ध्यान न जाने से इसका विशाल रूप तो नहीं मिल पाया है लेकिन यह निश्चित है कि माँ बंजारी देवी का स्थान ऐतिहासिक तथा अध्यात्मिक पहलू से काफी जुड़ा हुआ है। यह आदिवासी जनजातियों की धरोहर है। आदिवासियों के लिए तो सरकार सहायता के लिए कटिबद्ध है परन्तु उनकी इस धरोहर पर सरकार कितना ध्यान देती है, यह देखना बाकी है।
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