कौल कोन्डली माता का मंदिर (नगरकोटा जम्मू)
मोनिका त्यागी राणा
सम्पादक सम्पदा न्यूज
इस मंदिर में सभी त्योहार मनाये जाते हैं। मंदिर का अध्यात्मिक वातावरण श्राद्धुओं के दिल और दिमाग को शान्ति प्रदान करता है।
कौल कोन्डली मंदिर नगरकोटा शहर जम्मू कश्मीर में स्थित है यह मंदिर जम्मू शहर से 14 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर माता वैष्णो देवी को समर्पित है। माना जाता है कि अगर माता वैष्णो देवी कि यात्रा से पहले इस मंदिर से यात्रा आरम्भ करनी चाहिए। इस मंदिर में माता एक पिण्डी के रूप में स्थापित है। यह मंदिर जिस नगर में है यह नगर पहले नागराज के नाम से जाना जाता था और 13 कोस में बसा हुआ है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में वैष्णो माॅ यहाॅ पर 5 वर्ष की आयु में कन्या के रूप में प्रकट हुई। माॅ वैष्णो ने इस स्थान पर 12 वर्ष की तपस्या वाले स्थान पर ही पिण्डी रूप धारण किया। इस मंदिर में माॅ स्वयं प्राकुतिक पिण्डी रूपमें भक्तों को दर्शन देकर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। माता रानी ने इसी जगह पर कोन्डली महामाया महाशक्ति ने स्थानीय कन्याओं के रूप में लौड़ियाॅ खेली थी। नगरकोटा पहले ये नगर नागराज के नाम से विख्यात था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में वैष्णो माॅ यहाॅ पर 5 वर्ष की आयु में कन्या के रूप में प्रकट हुई। माॅ ने यहाॅ पर 12 वर्ष तक तपस्या की थी और तपस्या वाले स्थान पर ही पिण्डी रूप धारण किया। अपने पिण्डी रूप में भक्तोें को दर्शन देकर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। 12 साल कि तपस्या के दौरान माता ने विश्व गति हेतू हवन यज्ञ और भण्डारे किये। महामाया शक्ति ने देवताओं को चाॅदी का कौल प्रकअ करके कौल के अन्दर 36 प्रकार का भाॅगन देवताओं को करवाया था। माता जी ने चाॅदी के कौल को जमीन पर हिलाया तो जमीन से पानी निकल आया और सबको हिलाया उसी स्थान पर माॅ के सिक्को ने कुआॅ बनाया और इन कुएॅ का नाम माता जी का कुआॅ रखा। जब पांडवों का वनवास हुआ था तो पांडवों और उनकी माता कुन्ती को मालूम हुआ की नागराज गाॅव में माॅ निवास करती हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। तब माता कुन्ती पांडवों के साथ यहाॅ आयी। माता कुन्ती ने माता रानी से मन्नत मांगी कि माता रानी मेरे पुत्रों का वनवास जल्दी खत्म हो जाये और उनका राज पाठ वापस मिल जाये। तब महामाया ने कहा माता कुन्ती से कि पहले मेरा भवन बनाओं। तब पांडवों ने माता जी का ये भवन एक रात में बनाया था। वो रात 6 माह की हुई थी।
इस मंदिर के परिसर में अण्डेश्वरी ज्योतिलिंग का भी मंदिर है ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव माता रानी का भवन बना रहे थे तब भीम ने बोला कि हे माॅ मुझे प्यास लगी है। तब महाशक्ति ने कहा कि बेटा यहाॅ पानी कि व्यवस्था नहीं हैं तब महामाया भवन के पीछे गयी और चाॅदी का कौल (कटोरी) प्रकट किया और कौल में घीसा तो वहाॅ पर अण्डेश्वरी ज्योतिलिंग प्रकट हुए तब महाशक्ति ने कहा जहाॅ शिव होंगे वहा शक्ति होगी दोनों ही एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
मंदिर के परिसर में बना माता जी का कुआॅ है कहा जाता है कि इस कुएॅ का जल पीने से मन को शान्ति मिलती है। इस कुएॅ के जल को शरीर पर छीड़कने से शरीर शुद्ध होता है। इस मंदिर में सभी त्योहार मनाये जाते हैं। मंदिर का अध्यात्मिक वातावरण श्राद्धुओं के दिल और दिमाग को शान्ति प्रदान करता है।
मंदिर में एक वृक्ष भी है जिसको अक्षय वट कहा जाता है। पंडित श्रीघर ने इसी वट वृक्ष के नीचे कई वर्षों तक कठीन पत किया था। माता वैष्णो ने 5 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट होकर श्रीघर को भण्डारा करवाने को कहा था और श्रीघर गरीब होने के कारण मना करते रहे तब माता ने वही समय था जब चाॅदी का कटोरा प्रकट करके सबको भोजन करवाया था सभी देवताओं और गाॅव वालों को। इसी कारण इस जगह को कौल कौन्डली के नाम से जाना जाता है। इसी वृक्ष के नीचे माता रानी ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी जो भक्त दर्शन के लिये माॅ उनके साथ इसी वृक्ष पर झूला झूलती थी इसीलिये आज भी लोग मनोकामना पूरी करने के लिये यहाॅ झूला बांधते है।
0 Comments