वेदो से जुड़ें और प्रकृति से अनुकूलन पायें
-मोनिका त्यागी
‘‘हमने दो, चार व्यक्तियों से पूछा कि आप जब प्रभु के पास जायेंगें तो वहाॅ की भाषा क्या होगी, समाधान निकला वेदों की ओर चलो। इस सन्दर्भ में प्रस्तुत है सनातनी समाज की स्तम्भ मोनिका त्यागी के विचार। तथ्यों की अन्य व्याख्या आगामी माह में प्रस्तुत-सम्पादक’’
एक छोटी सी बात पर जिधर सर उठाओ हर कोई अपने विद्वता के तर्क को जबरन थोपने लगता है। इनसे कोई गुढ़ रहस्य आ टकराये तो कुतर्कों की एक फेहरिश्त सामने आ खड़ी होती है। आज वेद, उपनिषद, पुराण, जैसे ग्रन्थ जहाॅ देखने को मिल जाते हैं वहाॅ एक तृप्ति का अनुभव होता है। आप किसी के सलेक्शन को ही देखिये उसमें अन्य साहित्य के साथ निगेटिव साहित्य मिल जायेगें पर हमारे स्तम्भ नहीं मिलेंगें। फिर निगेटिव साहित्य वाले जब ईश्वर की सत्ता और वेद पर प्रश्न उठाते हैं तो सहज ही इन पर दया आने लगती है और अपने वैदिक शिक्षा पर गर्व होने लगता है।
ईश्वर क्या है, इसकी सत्ता कैसी है, इसका हीवन से क्या सम्बन्ध है ये बात सबको उलझा देते हैं। ईश्वर सत्य है, सर्वोच्च शक्ति है। पूजा, प्रार्थना, ध्यान और आरती आदि सब उसी के लिये हैं। ईश्वर एक है जिसे ब्रहम, परमेश्वर या परमात्मा कहा जाता है। यह अप्रकट है अजन्मा है। ईश्वर के प्रति आस्था रखना उस पर पूर्ण विश्वास रखना ही उसकी पूजा है। अन्य किसी में अपना आस्था को रखना भटकाव की स्थिति पैदा करता है। चाहे सुःख हो, दुःख हो ईश्वर के प्रति आस्था को कभी डगमगाने न दें। यदि र्ठश्वर में आपकी आस्था जग गयी तो इस आशा के अन्दर 5 इन्द्रियाॅ एकजुटता की ओर केन्द्रित होती जायेंगीं। हजनके अन्दर आस्था अपना स्वरूप बदलती है वे लोग अन्दर से लड़खड़ाने लगते है। सनातन धर्म कुछ नियमों में बॅधा हुआ है जिसके लाभ ही लाभ हैं। अत्यन्त सकून इस नियम का पहला वरदान है। प्रतिदिन शाम को सन्घ्या बन्दन से निगेटिव विचारों से मुक्ति मिल जाती है। उपवास के वैज्ञानिक लाभ तो हैं पर इसका आध्यात्मिक लाभ है मन को शान्ति प्रदान करना। आत्मा को शान्ति मोक्ष की ओर और मन की शान्ति विश्व शान्ति और सामंजस्य की ओर ले जाता है। तीर्थ यात्रा पुण्यदायी, फलदायी, होता है। तीर्थ से वैराग्य और सौभाग्य दोनांे प्राप्त होते हैं। जीवन का सार तत्व समझ में आने लगता है। इतना ही महत्व दान का है जो वेद के अनुसार उत्तम, मध्यम और निकृष्ट तीन प्रकार के माने जाते हैं। विद्या दान उत्तम, कीर्ति और स्वार्थ के लिये दान मध्यम और भीख, भाॅड और धर्म टैक्स के रूप में दान निकृष्ट माना जाता है।
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