पटियाला के काली माता का मंदिर
हर स्वरुप माता का अपने मे एक ऐसी कथा है जिसे जानने के बाद रौंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर पटियाला मे माता काली का मंदिर है। यह हैमाल रोड स्थित प्राचीन श्री काली माता मंदिर । मान्यता है कि मंदिर मे भक्त के प्रवेष करते ही उसके दुःखों का अंत होना षुरु हो जाता है। सन् 1936 ई0 पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह कलकत्ता माता के दर्षनो को गये वहाॅ उन्होने माता से प्रार्थना की कि माता अपनी कृपा हमारे राज्य पर भी बनाये रखें। महाराजा भूपिंदर सिह कलकत्ता से माता काली कि 6 फुट ऊॅची मूर्ति लेकर और साथ ही अखण्ड ज्योत लेकर पटियाला आने लगे तो माॅ उनको दर्षन दिये और कहा कि हम आपके साथ आपके राज्य में चलेगें परन्तु हमारी कुछ षर्त हैं पहली कि हम आपके साथ आपके किले में वास नही करेंगें हम आप की प्रजा के बीच रहेंगे तो महाराज मान गये उन्होने कहा कि हमारा मंदिर भी वही बनेगा। फिर उन्होने दूसरी षर्त रखी कि जब आप हमारी अखण्ड ज्योत और मूर्ति यहाॅ से पटियाला कि ओर लेकर चलेंगें जो रास्ते मे कही भी ये ज्योत और हमारी 6 फुट ऊॅची इस मूर्ति को नही रखेंगें यदि आपने ऐसा किया तो जिस जगह आप ये ज्योत और मूर्ति रखेंगे तो हमारा वास वहीं हो जायेगा हमारी स्थापना वही करनी होगी । जब राजा पटियाला पहुॅचे ये 1936 की बात है। जब वे पटियाला पहॅचे तां षाम हो चुकी वो अपने किले से 3 से 4 किलोमीटर दूर थे । अपने किले से इतनी दूरी पर षाम होने कि वजह से रुके और अखण्ड ज्योत और मूर्ति वही रख दी तो माता का वास वही हो गया वही राजा ने माॅ काली का भव्य मंदिर बनवाया तब माॅ काली ने राजा को वरदान दिया कि उनपर कभी कोई कश्ट नही आयेगा और कहा जाता है कि पटियाला षहर को पुराने समय मे श्राप मिला था कि पटियाला षहर का विनाष पानी या बाढ़ से होगा इसके सिवा किसी चीज से नही होगा। 1954 मे पटियाला षहर मे एक बड़ी भयानक बाढ़ आयी चारो तरफ हाहाकार मच गया उस समय वहाॅ के राजा थे अमरेन्द्र सिंह उन्होने माॅ काली की अराधना कि उन्होने माॅ काली को श्रृंगार का सारा सामान चढ़ाया उसके बाद वो सभी जेवर उन्होने उस बाढ़ से ग्रसित नदी मे प्रवाह किया उसके तुरन्त बाद ही बाढ़ का पनी उतरना षुरु हो गया।
इस मंदिर की एक बहुत ही खास बात है यहाॅ षराब कुंड है जहाॅ षराब चढ़ाई जाती हैं। माॅ काली ने षराब का कभी सेवन नही किया। हिन्दू धर्म को गलत आदतों से बचाने हेतु या षराब का एक तरह से त्याग किया जाता है। राजा भूपिंदर सिंह द्वारा स्ािापित मूर्ति खंडित होने की वजह से उसको मंदिर मे पीछे की तरफ रखा गया है। उसकी दूसरी तरफ दूसरी मूर्ति की स्थापना की गयी जिसकी आज भी पूजा होती हैं। स्भापना के समय देवी माॅ की मूर्ति का मुख षहर के बाहर की तरफ यानी बारादरी गार्डन की तरफ था। नवरात्र मे मंदिर मे भक्तों का मेला लगता हैं। माजा को नौ दिन स्नान कराया जाता है श्रृंगार किया जाता है। उस समय माॅ का रुप देखने लायक होता हैं। लोग दूर. दूर से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिये नवरात्रों मे यहाॅ आते हैं।
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