मनीमाजरा का किला
-महत्वपूर्ण किला को बचाना है जरूरी
-तीन सौ वर्षो का इतिहास पर पड़ा है पर्दा
मोनिका त्यागी राणा
सम्पादक सम्पदा
यह किला चंडीगढ़ के नजदीक मनीमाजरा शहर में आता है। यह किला 360 सालों से भी ज्यादा पुराना है। मैं आपको बताना चाहूंगी कि इस किले पर ‘ऑस्कर पुरस्कार’ जीतने वाली ‘जीरो डार्क थर्टी‘ फिल्म की शूटिंग की गई थी। इस किले का इतिहास काफी रोचक है। यह किला भी खुद में एक अद्भुत गरिमा लिए हुए है। इतना विशाल और पुराना होने के बाद भी आज तक खड़ा है, एक चट्टान की तरह। यहां के बारे में जितनी जानकारी मिली है इसके अनुसार बताया जाता है कि 1705 में देहरादून से माता राज कौर आई थी। कुछ दिन वह यहां इस किले के नजदीक मनीमाजरा के उस समय के सेठ भारामल के धर्मशाला में ठहरे थीं। शुरू शुरू में भारामल ने उनकी सेवा की। ज्यादा दिन ठहरने के बाद भारामल को राज कौर माता अखरने लगीं। एक दिन बहुत तेज बरसात होने के कारण धर्मशाला की छत टपकने लगी। माता राज कौर ने भारामल से छत को ठीक करवाने के लिए कहा परन्तु भारामल ने ठीक करवाने से इनकार कर दिया।
मनीमाजरा मैं माता राज कौर का एक भक्त गरीबदास जंगल से बेरी के पेड़ की टहनी लेकर आया। टपकती छत को उस शाखा द्वारा सहारा देकर छत को टपकने से रोका। गरीबदास से खुश होकर माता राज कौर ने गरीबदास को आशीर्वाद दिया, ‘‘जितनी इस बेरी की जड़े मजबूत होगी उतना ही तुम्हारा परिवार मजबूत होता जाएगा।’’ माता राज कौर के आशीर्वाद से गरीबदास मनीमाजरा का राजा बना और गरीब दास ने ही इस किले का निर्माण करवाया।
इसका इतिहास अनोखा ही है। यहां पर नाहन के राजा ने आक्रमण कर दिया था परंतु उस लड़ाई में कामयाब रहा। बाद में गरीब दास की उसके पिता को वहां का राज्य सौंप दिया और गरीबदास एक और नई लड़ाई लड़ने के लिए चला गया। गरीबदास जैसे ही वहां से चला गया उसके बाद ही नाहन के राजा ने पटियाला से मदद लेकर इस किले पर आक्रमण कर दिया और किले को अपने कब्जे में कर लिया। गरीब दास के पिता गंगाराव को मार दिया। इसका पता चलने के बाद गरीबदास ने पुनः किले पर कब्जा कर लिया और इसे बाद में अपने राज्य की राजधानी बनाई। गरीब दास की मृत्यु 1783 में हुई। उसके गोपाल सिंह और प्रकाश चाॅद नाम के दो लड़के थे। बड़े लड़के ने 1809 और 1814 के गोरखा की लड़ाई में पूरी जान लगा दी थी। सर डी ओच् टरलानी उसे नया जागीर देने वाले थे लेकिन उसने जागीर मांगने की वजाय राजा का खिताब मांग लिया और उसे वह दे भी दिया गया लेकिन वह भी 1816 में गुजर गया।
उसके बाद हमीर सिंह ने शासन संभाला। वह भी लेकिन ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाये। उसके लड़के गोवर्धन ने शासन सॅभाला परंतु 1847 में उसकी मृत्यु हो गई। बाद में गुरूबक्श ने शासन संभाला लेकिन 1866 मैं उसकी भी मृत्यु हो गई। उसके बाद उसके छोटे भाई भगवान सिंह ने सब संभाला। उसका कोई लड़का ना होने के कारण उसके गुजरने के बाद सरकार ने किले को अपने नियंत्रण में ले लिया था।
आज इस किले की संपत्ति मेहरवाल खेवाजी ट्रस्ट के नियन्त्रण में है, लेकिन अधिकार किसका होगा, इस बात पर न्यायालय में मामला चल रहा है। गरीबदास के वंश में फरीदकोट के राजा सर हरेंद्र सिंह बराड़ की शादी हुई।
उसकी पुत्री राजकुमारी दीपिंदर कौर मेहताब अपने पिता की लाडली थी। महाराजा ने अपने 22000 करोड की संपत्ति को ट्रस्ट के नाम करने के बाद राजकुमारी को ट्रस्ट का चेयरपर्सन बनाया था। 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। संपत्ति के हक के लिए उनकी बड़ी बेटी ने 31 साल मुकदमा लड़ा। महाराजा हरेंद्र सिंह बराड़ की तीन बेटियां और एक बेटा था। बेटे की मौत सड़क हादसे में हो गई थी। लाडली बेटी दीपिंदर कौर मेहताब की मृत्यु के बाद सारी संपत्ति ट्रस्ट को चली गई। आज किला बहुत बुरी हालत में है। किले की हालात और खराब होती ही जा रही है। किले की दीवारों पर छोटे-मोटे पौधे निकल आए हैं। हालांकि वहां एक परिवार रहता है परंतु उन्होंने हमसे बात करने से इंकार कर दिया था। यह एक महत्वपूर्ण धरोहर है उसको संभालना जरूरी है।
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